गुरुवार, 25 सितंबर 2008

बैल की भुमिका मरुस्थल के जहाज से कम नही

खेती-किसानी मे बढते यंत्रीकरण के दौर मे छत्तीसगढ के गांवों मे आज भी बैल किसानों के लिये वरदान बना हुआ है.छत्तीसगढ के गांवों मे,खेत-खलिहान मे बैल व किसान के अटूट रिश्ते को देखा जा सकता है.कुंवार के महीने मे किसानों की व्यस्तता फिर बढ गयी है.ग्रामीण अंचल मे सुबह से शाम तक महिलाएं निंदाई मे जुटी हैं.वनांचल के उबड-खाबड जमीन मे खेती करने मे बैलों की भूमिका मरुस्थल के जहाज ऊंट से क्या कम है?

बैल नही होने पर किसानों को खेतों की जुताई,बोंवाई और बियासी मे कई दिक्कतें आती है.व किसान खेती मे पिछड जाता है.धान के पौधों के बढने के बाद किसान परिवार तन्,मन व धन से बियासी मे लग जाते हैं. खेती किसानी मे किसान के लिये बैल जोडी सच्चा सेवक व साथी बन जाता है.धान के पकने के बाद उसकी मिसाई व अनाज के परिवहन मे बैल ही किसान का सहारा होता है.किसानों को उनकी जीतोड मेहनत का लाभ दिलाने व जमीन से सोना उगलने मे बैल की भूमिका क्या कम है?

छोटे व गरीब किसानो के पास इतने पैसे नही होते कि वे खेति-किसानी मे ट्रेक्टर व पावर ट्रिलर जैसे खेती के आधुनिक यंत्रों के इस्तेमाल के बारे मे सोंच भी सके.इस मौसम मे भी छत्तीसगढ के गांवों मे यह देखा जा सकता है कि कैसे किसान बैलों के साथ सुबह से शाम तक मेहनत करते हैं तब जाकर खेतों मे सुनहरी धान की बालियां लहराती है.सदियों से आवागमन के साधन का बीडा उठाये बैल आज भी गांवों मे किसानों का सबसे सच्चा साथी है.

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

गांव, किसान और खेती को समझने वाला ही आपके लेख के मर्म को समझ सकता है।

बाँटो और राज करो एक अच्छी कहावत है,लेकिन एक होकर आगे बढो इससे भी अच्छी कहावत है-गोथे ।

मै हुँ कौन ?

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दुर्ग के एक छोटे से गाँव मे जन्मा,गाँव की पुष्ट हवा मे पला-बढा। वर्तमान मे जन संपर्क अधिकरी के रुप मे मे । जन और संपर्क की भुमिका को सार्थक करने की कोशीश मे जुडा सरकारी तंत्र का एक अदना मुलाजीम ।

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