लोकतंत्र मे पब्लिक सब जानती है और समझ्ती भी है.लोकतंत्र मे पब्लिक ही असली किंग होता है.जनता जिसे चाहे जमीं प पटके दे और जिसे चाहे आसमा पर बिठादे.लोकतंत्र मे सार्वजनिक जीवन जी रहे लोगों पर लोक विश्वास होना जरुरी है.पर जनता कौन है पहले यही जानना जरुरी है.कई लोग भीड को ही जनता समझ लेते हैं.
वास्तव मे जनता अपने-आप मे आकार रहित,दुर-दुर फैले लोगों का समुह होता है.जो जन संचार माध्यम से एक दुसरे से जुडे होते हैं.भीड मे लोग शारीरिक रुप से नजदीक खडे होते हैं.पर जनता शारीरिक रुप से नही मानसिक रुप से जुडी होती है.भीड का नियंत्रण किया जा सकता है.पर जनता का नही.
जनता के संबोध को हम एक साधारण उदाहरण से समझ सकते हैं.जो लोग क्रिकेट देखने मे रुचि रखते हैं वे एक जनता के सदस्य होंगे.लेकिन इन क्रिकेट मे रुचि रखने वाले लोगों मे सबसे अच्छा खिलाडी सचिन है कि धोनी इस पर मतभेद हो सकता है.एक व्यक्ति कई जनता का सदस्य हो सकता है.पर भीड मे एक व्यक्ति एक समय मे एक ही भीड का हिस्सा हो सकता है.किसी घटना,विषय पर जो लोग समान प्रतिक्रिया करते हैं वे लोग एक जनता के सदस्य होते हैं
1 टिप्पणी:
ज्ञानवर्धक !! मजा आया जानकर
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